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सोने के कटोरे में मांग रहा था भीख

एक रेलवे स्टेशन के बाहर एक सड़क के किनारे एक भिखारी अपने कटोरे में पड़े सिक्कों को हिलाकर ही कटोरे को बजाता और भीख मांगता रहता। आने जाने वाले उस पर दया कर उसके कटोरे में पैसे डाल देते और आगे बढ़ जाते।

एक दिन उस भिखारी के पास  एक व्यक्ति आकर एक पल के लिए ठिठकर रुक गया। उसकी नजर भिखारी के कटोरे पर थी फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने।

 भिखारी उस व्यक्ति को इतने सारे नोट गिनता देख उसकी तरफ टकटकी बाँधे देख रहा था कि शायद कोई एक छोटा नोट उसे भी मिल जाए। 

तभी उस व्यक्ति ने भिखारी से  कहा, “अगर मैं तुम्हें हजार रुपये दूं तो क्या तुम अपना कटोरा मुझे दे सकते हो?”

भिखारी अभी सोच ही रहा था कि वह व्यक्ति बोला, “अच्छा चलो मैं तुम्हें दो हजार देता हूँ!”

भिखारी ने अचंभित होते हुए अपना कटोरा उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दिया और वह व्यक्ति कुछ सौ-सौ के नोट उस भिखारी को थमा उससे कटोरा ले अपने बैग में डाल तेज कदमों से स्टेशन की ओर बढ़ गया।

इधर भिखारी भी ये सोच कर अपने रास्ते हो लिया कि कहीं वह व्यक्ति अपना मन न बदल ले और हाथ आया इतना पैसा हाथ से निकल जाए।

रास्ते भर भिखारी खुश होकर  यही सोच रहा था कि कटोरे का क्या है? 10-20 रुपए का और ले आएगा। उस पुराने कटोरे के 2000 रुपए मिल गए। कई दिन आराम के कटेंगे।

उधर दो हजार में कटोरा खरीदने वाला व्यक्ति अब रेलगाड़ी में सवार हो चुका था। उसने धीरे से बैग की ज़िप्प खोल कर कटोरा टटोला – सब सुरक्षित था। कटोरा भारी भी था। 

वह जौहरी था। उसने जीवन भर धातुओं का काम किया था। भिखारी के हाथ में वह कटोरा देख वह हैरान हो गया था। कटोरा सोने का था।और लोग डाल रहे थे उसमें एक-दो रुपए के सिक्के! 

उसकी जौहरी वाली आँख ने धूल में सने उस कटोरे को पहचान लिया था। ना भिखारी को उसकी कीमत पता थी और न सिक्का डालने वालों को पर वह तो जौहरी था।

भिखारी दो हजार में खुश था और जौहरी कटोरा पाकर! उसने लाखों की कीमत का कटोरा दो हजार में जो खरीद लिया था।

इसी तरह हम भी अपने अनमोल काया की उपयोगिता को भूले बैठे है और उसे एक सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।

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