मानव जीवन भर दीपक से पार चांद की ओर नहीं जा पाता
एक व्यक्ति एक रात एक दीपक को जलाकर शास्त्रों की अध्ययन कर रहा था। कई देर तक वह अध्ययन करता रहा। थक गया तो सोने लगा और दीपक को फूंक मार कर बूझा दिया।
लेकिन यह क्या? उसे अचानक पूर्णिमा का चांद दिखाई दिया। रोशनी चारों ओर फैली थी। जब तक वह दीपक की रोशनी को देख रहा था उसे चांद की रोशनी का आभास नहीं हो रहा था। ज्यों ही उसने दीपक की रोशनी से बाहर झांकने का प्रयास किया तो उसे चांद की रोशनी दिखाई दी। खुला आकाश और अनंत प्रकाश।
मानव भी ऐसे ही अधिकतर जीवन दीपक की रोशनी तक सीमित रहने में ही बीता देता है। चांद की रोशनी देख ही नहीं पाता।
चांद की रोशनी हम तभी देख पाएंगे जब दीपक की रोशनी से पार देखेंगेे।
आपका दिन शुभ हो
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