24सी न्यूज़ शहीद भगत सिंह को उनके जन्मदिन पर उन्हें नमन करता है
हंसते-हंसते देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत के लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर 1907 को हुआ था। बंगा अब पाकिस्तान में है। हालांकि उनका पैतृक गांव खटकड़ कला है, जो पजांब भारत में है।
उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोर देने वाले भगत सिंह ने नौजवानों के दिलों में आजादी का ज़ुनून भरा दिया था।
पुरानी पुस्तकों पत्र पत्रिकाओं में उनका जन्म दिन अश्वनी शुक्ल तेरस सम्वत् 1864 दिया गया है। कुछ विद्वान इस तिथि को 27 सितंबर और कुछ 28 सितंबर मानते हैं।
मात्र 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिये थे। महात्मा गांधी ने जब 1922 में चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की तो भगत सिंह का नरमदल विचारधारा से मोहभंग हो गया। उन्होंने 1926 में देश की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। भगत सिंह करतार सिंह साराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित थे।
23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर षडयंत्र के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने फांसी दे दी। फांसी के लिए 24 मार्च की सुबह तय थी, मगर जनाक्रोश से डरी सरकार ने उन्हें 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही फांसी पर लटका दिया था।
. हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के मुखर समर्थक थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे।
उन्होंने *अकाली* और *कीर्ति* दो अखबारों का संपादन भी किया।
जेल में भगत सिंह लगभग दो साल रहे, इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्र नाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे.
*सरदार भगत सिंह के विचार*:-
.* बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती, क्रांति की तलवार विचारों धार पर तेज होती है। .* राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है. मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में आजाद है।
* प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं और देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।
.* जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
.* व्यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं।
.* निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
.* आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसी के अभ्यस्त हो जाते हैं। बदलाव के विचार से ही उनकी कंपकंपी छूटने लगती है। इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की दरकार है।
* वे मुझे कत्ल कर सकते हैं, मेरे विचारों को नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं लेकिन मेरे जज्बे को नहीं।
* अगर बहरों को अपनी बात सुनानी है तो आवाज़ को जोरदार होना होगा. जब हमने बम फेंका तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना और उसे आजाद करना चाहिए।
सौजन्य से- प्रो. कर्मपाल नरवाल, गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार
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