Home ब्रेकिंग न्यूज़ कभी बेरों का शहंशाह होता था महम-24c संडे स्पेशल

कभी बेरों का शहंशाह होता था महम-24c संडे स्पेशल

कहा जाता था महम के बेर बावड़ी और बावले प्रसिद्ध हैं

वक्त की गर्दिश में मिट गए सब बाग, बस गई बस्तियां
किसानों के लिए घाटे की सौदा हो गई बेर की खेती
महम

फारसी की एक कहावत का हिंदी अनुवाद है कि महम बेर, बावड़ी और वावलों के लिए प्रसिद्ध है। लगता है वक्त ने बहुत कुछ बदल दिया। बावड़ी ने भी अपना महत्व खो दिया है। बावले अब सयाने होने लगे हैं और यहां के बेर भी इतिहास बनते जा रहे हैं।
एक वक्त था जब महम के बेरों की चर्चा लाहौर तक होती थी। कहा जाता है कि दिल्ली दरबार जाने वाले लोग महम के बेर भेंट में ले जाते थे। अब सभी स्थानों से बेरों के बाग समाप्त हो चुके हैं। अब महम में एक महम भिवानी मार्ग पर नए बस स्टैंड के पास एक एकड़ का और दूसरा महम सैमाण रोड़ पर अग्रसेन पब्लिक स्कूल के पास दो एकड़ का बाग है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य स्थानों पर भी छोटे-छोटे इलाकों में कुछ बेरियां हैं। जो ये याद दिलवा रही हैं कि कभी महम बेरों का शहंशाह होता था।


चारों तरफ थे बेरों के बाग
कदाचित महम अपने समय का एक ऐसा दुलर्भ स्थान था, जो लगभग हर ओर से बेरों के बागों से घिरा हुआ था। पिछले लगभग 40 साल पहले तक ये बेरों के बाग सही सलामत थे। उसके बाद धीरे-धीरे कटने शुरु हुए और अब हर बाग के स्थान पर बस्तियां बस चुकी हैं। या कुछ और बन चुका है। कस्बे की 50 साल की उम्र या उससे ऊपर की पीढ़ी इन बागों के बारें में अच्छे से जानती है। बाबा रामगिरी का बाग, पुष्पा बहन जी की बाग, मुरंड जोहड़ वाला बाग, दिल्ली वालों का बाग यहां प्रसिद्ध थे। भिवानी स्टैंड वाले इलाके को तो पुरानी पीढ़ी आज भी ‘बाग वाली’ के नाम से ही पुकारती है।


गोली बेर थे प्रसिद्ध
आज भी एक एकड़ से ज्यादा में बाग लगाए हुए किसान राजेश गुप्ता बबलू का कहना है कि महम की मिट्टी बेरों के लिए अति उपयुक्त थी। यहां ज्यादा गोली बेर होते थे। हालांकि अन्य बेर भी बाद में लोगों ने लगाने शुरु कर दिए थे, लेकिन गोली बेरों की ही एक दर्जन के आसपास की किस्में महम में मिलती थी।
कम पानी में भी उग जाता है बेर
बबलू ने बताया कि बेर का पेड़ कम पानी में भी उग जाता है। इस पेड़ में सूखे से लड़ने की क्षमता होती है। अधिक तापमान भी सह लेता है। इसके लिए बलूई, दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। महम के आसपास ये मिट्टी है।


ये है बेरों की मुख्य किस्में
बेरों की मुख्य किस्में, गोला, काजरी गोला, सैन, कैथली, छुहारा, दन्डन, सेन्यूर, मुन्डिया, गोमा कीर्ति, उमरान, काठा, टीकड़ी तथा इलायजी बेर आदि। बेर के पौधे के आसपास शुरु के तीन साल तक मटर, मिर्च, चौला, बैंगन आदि की खेती भी की जा सकती है। अच्छे से स्थापित होने के बाद बेर को ज्यादा सिंचाई की जरुरत भी नहीं होती।


गरीब का फल कहा जाता बेर
बेर बहुत की गुणवान फल है। इस फल को गरीब का फल भी कहा जाता है। यह सेहत के लिए अति उपयोगी फल होता है। प्रोटिन तथा विटामिन सी जैसे पौष्टिक तत्व इसमें प्रचूर मात्रा में होते हैं।
अब हो गया है घाटे का सौदा
भैणी सुरजन के जसमेर सिवाच ने साढ़े तीन साल पहले ही दो एकड़ में बेरों का बाग लगाया है। इस बार उसका बाग फल दे रहा है। उसने बाग को ठेके पर दे रखा है। जसमेर का कहना है कि दो एकड़ में लोहे की तार सहित तीन साल में उसका लगभग पांच लाख रुपए के आसपास का खर्च आ चुका है। अभी वह नहीं कह सकता कि उसे कितना फायदा होगा। हालांकि राजेश बबलू का कहना है कि बेर की खेती अब घाटे का सौदा हो गया है। अन्य फसल के मुकाबले बेरों में कम फायदा होता है।

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