ये कहानी आपने सुनी होगी, 24c भी आज इसे सांझा कर रहा है।
एक साधु हर दिन एक गांव में भीक्षा मांगने आता था। भीक्षा देते समय एक महिला ने उस साधु से कहा, ‘महाराज, मेरा बेटा गुड़ बहुत अधिक खाता है। जरुरत से बहुत ज्यादा गुड़ खाने से इसके दांत खराब होने लगे और भी कई प्रकार की समस्याएं उसे होने लगी हैं। कृप्या करके इसका गुड़ खाना छुड़वा दो।’
साधु ने कुछ सोचा और कहा, ‘माई आज नहीं मैं कल इसका गुड़ खाना छुड़वाऊंगा।’
महिला ने अगले दिन फिर से साधु से वही बात दोहराई। साधु ने अगले दिन भी कहा कि कल छुड़वाऊंगा।
इस प्रकार तीन-चार दिन निकल गए। महिला साधु से अपने बेटे का गुड़ खाना छुड़वाने के लिए प्रार्थना करती रही। साधु उसे अगले दिन के लिए टालता रहा।
आखिर एक दिन साधु ने उस बच्चे को बुलाया और उसकी आंखों में आंखे डाल कर कहा, ‘बेटा गुड़ मत खाना।’
साधु की नसीहत का असर ऐसा हुआ कि बच्चे ने गुड़ खाना छोड़ दिया
महिला ने साधु से पूछा, ‘महाराज, आपने जब सिर्फ ये ही कहना था कि बच्चे गुड़ खाना छोड़ दे। तो आपने पहले दिन ही इसे गुड़ खाने से मना क्यों नहीं किया। इतने दिन क्यों लगाए।’
साधु ने कहा, ‘माई, तब मैं खुद भी बहुत ज्यादा गुड़ खाता था और जो काम आप खुद करते हो, उसे छोडऩे की नसीहत किसी और कैसे दे सकते हो। इन दिनों में मैने खुद गुड़ खाना छोड़ा है। तब बच्चे को नसीहत दे रहा हूं।’
नसीहत उसी बात की देनी चाहिए, जिस पर आप खुद अमल करते हो। तभी नसीहत का असर होता है।
आपका दिन शुभ हो
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