मियां जी वाली कुए के पास बना मकबरा

महम के इतिहास का बड़ा रहस्य छुपा है महम स्टेडियम के आसपास

लाहौर तक जाता था मियां जी वाली कुई का पानी
कौन था मियां जी?
महम

इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेताओं ने सिद्ध कर दिया है कि महम इलाका कम से कम पांच हजार साल से लगातार आबाद है। प्राचीन इतिहास में रूचि रखने वाला कोइ भी व्यक्ति महम में आकर ठहर सा जाता है। वो जानता है कि यहां भारत के इतिहास के अनगिनत, अनकही, अनछूई कहानियां दफन हैं। 24c न्यूज प्रयास कर रहा है कि नई पीढ़ी को जितना संभव हो सके इस इतिहास से अवगत कराया जाए।

खेल स्टेडियम और रविदास मंदिर के बिल्कुल साथ एक पुराना कुआ है। उसके साथ ही एक मकबरा भी है। बेशक आसपास कब्जे हो गए हैं, लेकिन एक सराय जैसे किसी स्थान के अवशेष भी साफ हैं।

लगता है बाद में लगाने का प्रयास किया गया है यह पत्थर

मकबरे के पत्थर के साथ हुई है छेड़खानी
मकबरे पर एक पत्थर लगाने का प्रयास किया गया है। साफ है यह पत्थर बाद में लगाया गया है। मकबरे के अंदर का हिस्सा काफी क्षतिग्रस्त है। गहरी खाई सी बनी हुई है। हालांकि इस मकबरे की नक्काशी गजब की है। लगता है ये 1800 ई. के आसपास बना होगा।

मियां जी कुएं के पास बने मकबरे का भीतरी दृश्य


लाहौर तक जाता था इस कुई का पानी
यहां रद्द हालात में एक कुआ है। जिसे मियां जी वाली कुई कहते हैं। बुजुर्ग बलबीर सिंह ने बताया कि इसका पानी गजब का था। दूर-दूर तक इसका पानी ले कर जाया जाता था। बलबीर सिंह बताते हैं अंग्रेजी शासन काल में रोहतक के डीसी के पास यहीं से पानी जाता था। यह भी कहा गया है कि लाहौर तक भी यहां का पानी जाता था।

यहां लगता था मेला
इस कुएं और मकबरे के साथ ही पहले खाली मैदान होता था। बूढ़ी तीज का मेला यहीं लगता था और कुश्ती दंगल भी यहां होता था। हिंद केसरी पहलवान चंदगीराम और खरकड़ा के पहलवान मांन्डू राम के बीच इसी स्थान पर 1960 के आसपास ऐतिहासिक कुश्ती हुई थी।

मकबरे के पास ही आज भी स्थित है मियां जी वाली कुई


कौन था मियां जी?
मियां जी कौन था? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। हां इतना अवश्य है कि यदि शोध सही दिशा में रहा तो शीघ्र ही इस बात की प्रामाणिक जानकारी मिलेगी कि मियां जी कौन था? उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं, लेकिन अभी इस बारे में शोध जारी है।

मुरंड के साथ गहरा संबंध था इस स्थान का
यह स्थान महम के ऐतिहासिक तालाब मुरंड के बहुत नजदीक है। 17वीं तथा 18वीं शदी में महम में हुए कृष्ण भक्त सूफी संत सैयद गुलाम हुसैन महमी ने अपनी एक रचना में मुरंड जोहड़ का जिक्र किया है। उन्हें यहां मियां साहब भी कहा जाता था।

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