अशर्फियों में बेचने की बजाय महात्मा बुद्ध के चरणों में किया अर्पित
एक बार एक अत्यत गरीब व्यक्ति था। उसकी झोपड़ी के पास एक बहुत सुंदर फूल खिल आया। उस समय फूल खिलने का मौसम भी नहीं था। इसके बावजूद सुंदर फूल का खिलना हैरान करने वाला था। उस व्यक्ति ने सोचा कि वह इस फूल को नगर के बाजार में बेच कर अच्छे पैसे ले सकता है।
उस व्यक्ति ने उस फूल को लिया और नगर में बेचने के लिए चल पड़ा।
रास्ते में उसने देखा कि नगर के सेठ और अन्य गणमान्य व्यक्ति अपने रथों और घोड़ों पर सवार होकर कहीं जा रहे हैं। उनके पीछे नगर का राजा भी था।
एक सेठ ने उस गरीब आदमी के हाथ में फूल देखा तो कहा कि वह इस फूल को उसे बेच दे। सेठ उसके लिए उसे अच्छी कीमत देने को तैयार था।
तभी पीेछे से राजा का रथ भी आ गया। राजा को भी फूल पसंद आया और उसने उस गरीब व्यक्ति से कहा कि वह इस फूल के लिए उसे सेठ से भी ज्यादा कीमत देने को तैयार है।
राजा फूल के लिए एक हजार अशर्फियां देने को तैयार हो गया। गरीब आदमी ने इंकार कर दिया।
राजा ने कहा कि वह इससे ज्यादा अशर्फियां भी दे सकता है। बस ये फूल आप मुझे दे दें!
गरीब व्यक्ति को लगा कि इस फूल में जरुर कोई बात है। कोई भी कितनी भी कीमत देने को तैयार हो रहा है।
उसने पूछा कि वे इस फूल के लिए इतनी कीमत क्यों, देना चाहते हैं? गरीब व्यक्ति को बताया गया कि नगर के बाहर महात्मा बुद्ध आकर रुके हैं। ये बेमौसमी सुंदर फूल उनके चरणों में भेंट करना चाहते हैं, ताकि महात्मा प्रसन्न हों।
गरीब व्यक्ति ने कहस कि ऐसी बात है तो यह फूल बेशकिमतीं है। क्यों ना मैं स्वयं ये फूल महात्मा बुद्ध के चरणों में अर्पित करूं। किसी और को क्यों दूं?
राजा उस गरीब व्यक्ति से पहले महात्मा बुद्ध के पास पहुंच गया। राजा ने महात्मा बुद्ध से कहा कि आज वह एक गरीब व्यक्ति से हार कर आया है? राजा ने महात्मा को सारा वृतांत सुनाया।
जब वह गरीब आदमी महात्मा ब बुद्ध के पास पहुंचा तो महात्मा ने उससे पूछा कि आपको जब इस फूल की इतनी अधिक कीमत मिल रही थी। तो भी आपने इसे बेचने की बजाय मुझे अर्पित करना ही ज्यादा उपयुक्त क्यों समझा? जबकि आप एक गरीब आदमी हैं, आपके लिए इतने अधिक धन बहुत अधिक मायने हैं।
उस गरीब व्यक्ति ने कहा कि जब राजा भी इस फूल को आपको अर्पित करके पुण्य लेना चाहता था तो उस पुण्य की कीमत निश्चिततौर पर अशर्फियों से ज्यादा होगी।
महात्मा बुद्ध ने तुरंत अपने शिष्यों को बुलाया और कहा कि आओ और मिलो! एक सच्चे ज्ञानी से।
व्यक्ति धन दौलत और पद पा लेने से तथा पुस्तकें पढ़ लेने मात्र से ज्ञानी नहीं हो जाता। व्यक्ति भीतर के ज्ञान से ज्ञानी होता है।(ओशो प्रवचन)
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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