चार युवकों की समुंद्र यात्रा की कहानी
एक बार चार युवकों ने नशा कर लिया। रात का समय था। उन्होंने तय किया कि चलों! नाव से समुंद्र की यात्रा पर निकलते हैं।
वे समुंद्र के किनारे गए और किनारें पर बंधी एक नाव में सवार हो लिए। चारांे ने नाव में सवार होकर चप्पू चलाना आरंभ कर दिया।
नाव पानी में पहले ही थी। चप्पू चल रहा थां। चारों नशे में थे। पूरी ताकत और आनंद से नाव का चप्पू चलाए जा रहे थे। लग रहा था नाव चल रही है और वे चांदनी रात में समुंद्र के सौदर्य का आनंद ले रहे हैं। रात भर चप्पू चलाते रहे। उस वक्त तक जब तक उनका नशा कुछ कम नहीं हो गयां। जब उनका नशा कम होने लगा तो उन्हें लगा कि वे कहीं दूर तो नहीं निकल आए।
अचानक उन्हें वापिस चलने का ख्याल आया। तब तक हल्की सी रोशनी हो गई थी। उन्हे एक किनारा दिखा। लगा कहीं दूर निकल आए।
तभी चारों में एक नीचे उतरा और देखा कि उन्होंने नाव पर सवार होने से पहले नाव की जंजीरे तो खोली ही नहीं। रातभर चप्पू चलाते रहे। नाव कहीं गई ही नहीं। यहां तक कि उन्हें नाव चलने का आभास भी होता रहा।
ठीक इसी प्रकार हम भी नाव में सवार भी हो जाते हैं और चप्पू भी चलाते हैं। लगता भी है कि नाव चल रही हैं। जब तक सांसरिक नशे में होते हैं तब तक यात्रा का आनंद भी आता दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में कहीं जा नहीं पाते हैं।
क्योंकि हम भी उन युवकों की तरह नाव की जंजीरों को खोल ही नहीं पाते।
जब लोक की जंजीरों को नहीं खोलेंगे तोे अलोक की यात्रा कैसे हो सकती है? (ओशो प्रवचन)
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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