स्तुति शब्दों से नहीं भावों से होती है
एक बार एक फकीर अपने शिष्य के साथ जंगल से गुजर रहा था। फकीर को अचानक स्मृति लोप हो गया। वह अपने शिष्य के साथ जंगल मे रास्ता भटक गया। दोनों खतरनाक दिशा की ओर चले गए।
फ़क़ीर ने अपने शिष्य से कहा ‘मैं सब कुछ भूल रहा हूं। मुझे पता नहीं अचानक क्या हो गया है? शायद शैतान ने मुझ पर कब्जा कर लिया है?
फकीर ने शिष्य से कहा कि वह तुरंत उन मंत्रों का उच्चारण करें, जो वह करता है।
शिष्य ने मंत्रों का उच्चारण करने का प्रयास किया, लेकिन शिष्य भी मंत्रों का उच्चारण नहीं कर पाया उसे भी स्मृति लोप हो रहा था।
फकीर ने कहा पता नहीं क्या होगा ? हम जंगल में खतरनाक रास्ते पर आ गए हैं ?
फकीर में अपने शिष्य से एक कोशिश और करने को कहा।
शिष्य ने कहा, ‘गुरुजी मुझे केवल वर्णमाला याद आ रही है, मंत्र याद नहीं आ रहे। अगर आप कहो तो वर्णमाला का उच्चारण कर देता हूं।
फकीर ने कहा जो तुम्हें याद है उसका उच्चारण करो।
शिष्य ने तुरंत वर्णमाला को उच्चारित करना शुरु किया। फ़कीर भी शिष्य के साथ पूरी तन्मयता से वर्णमाला का उच्चारण करने लगा। उसने अपने अंदर भाव पैदा किया कि वर्णमाला के अक्षरों से ही मंत्र बने है। उसने भगवान से प्रार्थना की
‘हे प्रभु ! आज वर्णमाला से आप स्वयं मंत्र बना लेना।’
फकीर की यादाश्त लौटने लगी। उसे सब याद आने लगा।रास्ता भी समझ आ गया। शिष्य की स्मृति भी लौट आई।
फकीर ने अपने शिष्य से कहा की यदि भाव से उच्चारित की जाएं की जाए तो वर्णमाला भी वेद बन जाती है। बात शब्दों की नहीं बात भावों की होती है।
अतः स्तुति शब्दों से नहीं भावों से होती है
आपका दिन शुभ हो!!!
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