रबीन्द्रनाथ टैगोर का किस्सा

गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर शान्ति निकेतन के अपने एकान्त कमरे में कविता लिखने में तल्लीन थे। तभी नीरवता को बेधती हुई एक आवाज आई – ‘रूको’ आज तुम्हें खत्म ही कर देता हूँ? रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने दृष्टि उठाई। देखा एक डकैत चाकू लिए हुए उन पर वार करने के लिए प्रस्तुत है। वे कविता लिखने में पुनः तल्लीन हो गए और धीरे से कहा – ‘मुझे मारना चाहते हो, ठीक है मारना, लेकिन एक बहुत ही सुन्दर भाव आ गया है, कविता पूरी कर लेने दो।’ भाव में इतने डूबे कि उन्हें याद ही नहीं कि उनका हत्यारा इतना निकट है।

इधर हत्यारे ने सोचा – ये कैसा आदमी है ? मैं चाकू लिए खड़ा हूँ। उस पर कोई असर नहीं। गुरूदेव की कविता जब समाप्त हुई उन्होंने दरवाजे की ओर दृष्टि डाली मानों कह रहे हों – अब मैं खुशी से मर सकता हूँ, लेकिन यह क्या ? हत्यारे ने चाकू बाहर फेंक दिया और उनके चरणों में बैठकर रोने लगा।

आपका दिन शुभ हो!

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