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गुरु ने कैसे ली अपने शिष्यों की परीक्षा: आज का जीवनमंत्र 24c

हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो

हजरत निजामुद्दीन औलिया के कई हजार शागिर्द थे। लेकिन जैसा कि हर गुरु के साथ होता है कि कोई न कोई उनका प्रिय शिष्य होता है। ऐसे ही हजरत निजामुद्दीन औलिया के 22 बहुत ही करीबी शिष्य थे। वो शिष्य अपने गुरु को अल्लाह का ही एक रूप मानते थे।

एक बार हजरत निजामुद्दीन औलिया के मन में आया कि क्यों न इन सब की परीक्षा ली जाए और देखा जाए कौन मेरा सच्चा शिष्य साबित होता है।

इसी विचार से वो अपने 22 शिष्यों को लेकर दिल्ली भर में घूमने लगे। घुमते-घुमते रात हो गयी। तब हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने शिष्यों को लेकर एक वैश्या के कोठे पर गए। वहां उन सब को नीचे खड़े रहने के लिए कहा और खुद ऊपर कोठे पर चले गए।

वैश्या ने जब उन्हें देखा तो वो बहुत प्रसन्न हुयी और बोली, “आपके आने से मेरा तो जीवन धन्य हो गया। कहिये मैं आपकी किस प्रकार सेवा कर सकती हूँ?”

औलिया ने उस वेश्या से कहा, “तुम मेरे लिए भोजन का प्रबंध करो और बाहर से एक शराब की बोतल में पानी ऐसे मंगवाना कि नीचे खड़े मेरे शिष्यों को वो शराब लगे।”

वेश्या ने औलिया के हुक्म का पालन किया।

जब बाहर से भोजन और शराब की बोतल जाने लगी तो सरे शिष्य बहुत अहिरन हुए। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। सब सोचने लगे कि ऐसा कैसे हो गया? जो गुरु हमें सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। वो खुद ही ऐसे काम कर रहे हैं।

अब धीरे-धीरे रात बीतने लगी। गुरु जी को बाहर न आते देख धीरे-धीरे एक-एक कर सभी शिष्य वहाँ से चले गए। लेकिन एक शिष्य अपनी जगह से हिला तक नहीं और वो थे – अमीर खुसरो।

सुबह जब औलिया नीचे उतरे तो देखा की सब चेलों में से बस अमीर खुसरो ही वहां मौजूद थे। उन्हें वहाँ देख औलिया ने उनसे पुछा, “हमारे साथ आये बाकी चेले कहाँ गए?”

“रात को इन्तजार करते-करते भाग गए सब।”

“तू क्यों नहीं भागा? क्या तूने नहीं देखा कि मैंने सारी रात वैश्या के साथ बितायी और शराब भी मंगवाई थी?”

तब अमीर खुसरो ने जवाब दिया, “भाग तो जाता, लेकिन भाग कर जाता कहाँ? आपके क़दमों के सिवा मुझे कहाँ चैन मिलता। मेरी सारी जिंदगी तो आपके चरणों में अर्पण है।”

यह सुन कर हजरत निजामुद्दीन औलिया को बहुत प्रसन्नता हुयी। उन्होंने अपने इस गुरु भक्त शिष्य को बहुत आशीर्वाद दिए।

उस दिन के बाद खुसरो की गुरु भक्ति ऐसी सिद्ध हुयी की आज अमीर खुसरो की मजार उनके गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया के पास ही बन गयी। और इस तरह आज भी गुरु-शिष्य साथ ही रहते हैं।

आपका दिन शुभ हो!

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