1960 के दशक का महम में स्वामी कृष्णानंद-गोविंदानंद जी के साथ श्रद्धालुओं का दुलर्भ चित्र

अब भारत ही नहीं विश्व में फैल चुकी है यह ज्ञान परंपरा

वर्तमान में डा. स्वामी विवेकानंद जी महाराज कर रहे हैं नेतृत्व

श्रीभगवद्धाम मंदिर में आज से शुरु हो रहा है भक्तिज्ञान यज्ञ
इंदु दहिया

जमीन पर सरहदों की लकीरें भले ही खींच जाए। धरती के टुकड़े पर देश बंट जाएं। व्यक्ति जो कल थे आज ना रहें, लेकिन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं देश और काल से भी पार निकल जाती हैं।
महात्माओं और संतों द्वारा स्थापित ज्ञान गंगा सरहदों और समय को पीछे छोड़ स्थायी रूप धारण कर लेती हैं। ऐसा ही एक आध्यात्मिक आयोजन है महम में हो रहा भक्ति ज्ञान सम्मेलन।
इस भक्ति ज्ञान यज्ञ की परपंपरा सवा सौ साल से अधिक समय से निरंतर चल रही है। यह भक्ति ज्ञान यज्ञ जहां से शुरु हुआ, वह स्थान अब पाकिस्तान का हिस्सा है, लेकिन विभाजन के बाद यह ज्ञान और अधिक फैला। अब यह ज्ञान भारत ही नहीं विश्व स्तर पर कई शहरों में होता है।

यह है संक्षिप्त इतिहास
वैसे तो यह एक प्राचीन तथा विराट भक्ति आंदोलन है। इस आंदोलन का शुभारंभ भक्ति आंदोलन काल में श्री चंद्र देव जी महाराज से माना जाता है। आधुनिक युग में इसका फैलाव गांव कलूर कोट, तथा गांव कोटजाई से हुआ। ये दोनों गांव वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा हैं। इन गांवों की पवित्र रज और यहां के आसपास के गांवों में बहने वाली भक्ति ज्ञान गंगा से निकले आध्यात्मिक पांच संत इस भक्ति आंदोलन के ध्वजवाहक हैं। ये ब्रह्मलीन संत हैं स्वामी भगवानदास, स्वामी संतोष दास, स्वामी अमरदास तथा स्वामी कृष्णा नंद जी- गोविंदा नंद जी महाराज। वर्तमान में अपने गुरुजन स्वामी कृष्णानंद जी गोविंदा नंद जी को समर्पित कर इस भक्ति ज्ञान परंपरा को नेतृृत्व डा. स्वामी विवेकानंद महाराज जी कर रहे हैं।

1885 में कोटजाई में आए स्वामी भगवान दास
स्वामी भगवान दास 1885 में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गांव कोटजाई में आए। 25 वर्ष तक निरंतर साधना के बाद यहां उन्होंने एक संतपुरा की स्थापना की, जिसका नाम भगवानपुरा था। यह भगवानपुरा ही वर्तमान के भगवदधाम का प्रारंभिक रूप था। वर्तमान में इसका मुख्यालय हरिद्वार में है।

स्वामी कृष्णानंद-गोविंदानंद जी का अपने गुरु संतोषदास जी के साथ बचपन का चित्र

1905 आए संत स्वामी संतोष दास
1905 में इस गांव में एक और परमसंत स्वामी संतोषदास जी आए। इस भक्तिज्ञान यज्ञ से जन्म से जुड़े हंसराज गेरा ने बताया कि उन दिनों भीक्षा परंपरा थी। भीक्षा लाने वाला साधु गुरु के चरणों में भीक्षा को समर्पित कर देता था। उसके बाद गुरु अपने हाथों से साधु को खाने के लिए भोजन देता था। एक बार संतोषदास जी के गुरु ने परीक्षा लेने के लिए उन्हें कुछ दिनों के लिए भीक्षा से कुछ भी नहीं दिया। संतोषदास ने गुरु जी से भोजन की मांग ही नहीं और भूखें ही रहे। तभी से उनके गुरुदेव ने उनका नाम संतोषदास रख दिया। स्वामी संतोषदास ही स्वामी कृष्णानंद जी गोविंदानंद जी के गुरु हैं। स्वामी भगवानदास जी श्री कृष्णानंद जी गोविंदा नंद के परमगुरु हैं।
1920 में शुरु किया था संस्कृत विद्यालय
1919 में उत्तरखंड में 18 वर्ष तक लगातार तपस्या करने वाले परमयोगी स्वामी अमरदेव कोटजाई गांव में पहुंचे थे। 1920 में उन्होंने वहां पर आश्रम हरिमंदिर संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी। 1934 में इसकी शाखा दरियाखान में तथा 1948 में मनकेरा जिला मियांवाली में खोली गई। आजादी के बाद इस विद्यालय की स्थापना पटौदी, जिला गुड़गांव हरियाणा में की गई।

स्वामी कृष्णानंद-गोविंदा जी का युवा अवस्था का चित्र

श्रीकृष्णानंद-गोविंदानंद जी रहे भारत में ध्वजवाहक
विभाजन के बाद स्वामीकृष्णानंद जी-गोविंदानंद जी ने इस भक्तिज्ञान यज्ञ परंपरा का भारत में प्रचार-प्रसार किया। पाकिस्तान से आए श्रद्धालुओं को एकजुट किया तथा हरिद्वार तथा देश के अन्य शहरों में इसकी शाखाएं स्थापित की। इन संतों ने शिक्षा व आध्यात्मिक के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया।

1998 में महम में निकली प्रभातफेरी का चित्र

श्रीराम धर्मशाला से शुरु हुआ था महम में ज्ञान यज्ञ
महम में यह भक्तिज्ञान यज्ञ आजादी के वर्ष ही 1947 में महम श्रीराम धर्मशाला से से शुुरु हो गया था। स्वामी कृष्णानंद जी-गोविंदानंद जी ने स्वयं आकर यहां आशीर्वाद दिया था। कुछ सालों बाद ही यह ज्ञान यज्ञ वर्तमान भगवदधाम मंदिर से शुरु हो गया था। तब से यह यज्ञ लगातार यहीं पर चल रहा है। चाहे जो हालात रहे हों यह यज्ञ हर वर्ष हुआ।

डा. स्वामी विवेकानंद जी महाराज

डा.स्वामी विवेकानंद जी कर रहे है वर्तमान में संचालन
इस भक्तिज्ञान परंपरा का वर्तमान में संचालन डा. स्वामी विवेकानंद जी महाराज कर रहे हैं। उनकी वाणी से अक्सर यह निकलता है कि जो भी अच्छा हो रहा है वह सब मैं नहीं, मेरे गुरुदेव श्रीकृष्णानंदजी-गोविंदानंद जी कर रहे हैं। अगर कोई त्रुटि होती है वो मेरे द्वारा होती है। दर्शनवेदांत में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर चुके डा. स्वामी विवेकानंद बचपन काल से ही अपने गुरु की शरण में आ गए थे। इसी सप्ताह 24c न्यूज से एक मुलाकात में उन्होंने धर्म और भक्ति के बारे में अत्यंत सरल शब्दों में अति लाभप्रद शिक्षाएं दी थी। उनका गुरु के प्रति समपर्ण इस कदर था कि अपने गुरु की जिक्र करके उनकी आंखे नम हो रही।
संदर्भ
पुस्तक श्रीकृष्ण-गोविंद चरितावली

स्वामी डा. विवेकानंद जी मुलाकात

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