महम में आज भी श्रद्धा से याद किया जाता है बद्रीप्रसाद को
जन्मदिवस पर विशेष
24सी न्यूज़, महम
महम एक ऐसा भूखण्ड है, जो अपनी ख़ास सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक पहचान रखता है।
ज्ञात इतिहास का शायद ही कोई ऐसा काल रहा हो, जब यहां के निवासियों ने तत्कालीन परिस्थितियों पर अपनी प्रतिक्रिया ना दी हो। खासकर मातृभूमि के सम्मान और रक्षा के लिए यहां के वीर जवानों ने हमेशा अपने प्राणों की बाज़ी लगाई है।
बाहरी आक्रान्ताओं से लड़ने से लेकर आज़ादी के आंदोलन तक में यहां के वीरों की भूमिका स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है। आज़ादी के बाद के युद्धों में भी यहां के योद्धाओं ने इस परम्परा को बखूबी निभाया है।
आज़ादी के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महम के बद्रीप्रसाद काला इस दुनियां से जाने के 38 साल भी यहाँ के लोगों के दिलो में जिंदा हैं। इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 15 सितंबर 1916 को महम में श्री राम जांगड़ा के घर हुआ था।
बद्रीप्रसाद के दिलों दिमाग में देश की आज़ादी का जुनून था। बदरीप्रसाद काला के दादा कूड़ा राम को 1857 में काला पानी भेजने की सज़ा हुई थी। जहां बाद में उनकी मौत हो गई थी। बद्रीप्रसाद अपने दादा की कुर्बानी से प्रेरित होकर आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े और कांग्रेस में शामिल हो गए।
मात्र 14 वर्ष की उम्र में हिंदी आंदोलन में रोहतक में उनकी पहली गिरफ्तारी हुई। काला की पहली गिरफ्तारी 1930 में हुई थी। उसके बाद वे 1942 में सत्याग्रह आंदोलन में गिरफ़्तार हुए। एक साल की कठोर सज़ा हुई। इस दौरान वे लाहौर जेल में रखे गए। जहां उस समय अग्रणी स्वतन्त्रता सेनानियों को रखा जाता था।
इस दौरान काला को कठोर यातनाएं दी गई। अंग्रेजी सरकार का विरोध करने के कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। अंग्रेजों द्वारा दी गई यतनाओं के निशान उनके शरीर पर जीवन पर्यन्त थे।
बद्रीप्रसाद काला कांग्रेस के सच्चे सिपाही थे। संयुक्त पंजाब में मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी तथा अन्य बड़े कांग्रेसी नेता उनका बहुत सम्मान करते थे। हरियाणा बनाने के बाद महम से कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने चुनाव भी लड़ा था। लेकिन मामूली अंतर से हार गए थे। काला ने बंटवारे के दौरान विस्थापितों को बसाने में भी खूब मदद की थी।
बद्रीप्रसाद एक ओजस्वी वक्ता थे। वे गोहाना तहसील के रजिस्ट्रार भी रहे। उस समय महम गोहाना तहसील में आता था। 23 सितंबर 1982 को वे इस संसार को छोड़ कर चले गए।
बेशक बद्रीप्रसाद काला आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके सिद्धान्त हमेशा हमारे बीच रहेंगे। उनके पुत्र जगत सिंह काला वर्तमान में महम हलका कांग्रेस के अध्यक्ष हैं।