स्वतंत्रता सेनानी द्वारा खुद लिखी उनकी कहानी!
बता रहे हैं पूर्वजों के बलिदान को भी!
महम
मेरे दादा कुड़ा, भिखारी, कुशल और दुन्नी ने 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लिया। उन्हें गिरफ्तार किया गया। ट्रायल के लिए कलानौर भेज दिया। एक पूर्वज कुड़ा राम को आजीवन कारावास की सजा हुई। उन्हें अंडेमान जेल जिसे काला पानी कहा जाता था, भेज दिया गया। वहां 13 साल बाद उनकी मौत हो गई।
जी हा! ये किसी की सुनी सुनाई नहीं, बल्कि बद्रीप्रसाद काला द्वारा लिखा विवरण है। जो 24 सी न्यूज को उनके पुत्र जगत सिंह काला से मिला है।
आज हरियाणा शहीदी दिवस है और संयोग देखिए! आज ही महम के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बद्रीप्रसाद काला की पुण्यतिथि भी है।
24c न्यूज को मिले दस्तावेज में एक दुलर्भ जानकारी यह है कि ब्रदीप्रसाद काला का नाम महम थाना के खूफिया रजिस्ट्र में नाम दर्ज है। अंग्रेज सरकार उन पर नजर रखती थी। उन पर दर्ज एक एफआईआर की काॅपी भी उपलब्ध हुई है।
कब हुए गिफ्तार?
बद्रीप्रसाद काला लिखते हैं, भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लेने के कारण उनकी गिरफ्तारी के आदेश हुए। 21 फरवरी 1942 से 25 जनवरी 1943 तक भूमिगत रहे, 26 जनवरी 1943 को गिरफ्तार कर लिया गया। गिफ्तारी के बाद उन्हें लाहौर के शाही किला भेज दिया गया। जहां से अप्रैल 1943 में उन्हें मुलतान जेल भेज दिया गया। जनवरी 1944 में उन्हें रिहा किया गया।
टूट गया था हाथ
बद्रीप्रसाद लिखते हैं मुलतान जेल में उन्हें भयंकर याजनाएं दी गई। कई बार पुलिस तथा अग्रंेजों द्वारा पीटा गया। उन्हें सत्याग्रह के दौरान भी मुलतान जेल में बंद रखा गया। एक बार तो उन्हें इतना पीटा गया कि उनका बायां हाथ भी टूट गया था। चोट के निशान उनके चेहरे तथा शरीर के अन्य भागों पर जीवनपर्यंत रहे।
कब हुई थी पहली गिफ्तारी?
एक दस्तावेज के अनुसार 15 अप्रैल 1941 के उन्हें रोहतक के तात्कालीन एडीएम लछमी दत्त ने सजा सुनाई। उनकी पहली गिफ्तारी 10 सितंबर 1930 को सरकार के विरोध में स्टूडेंट्स सभा में भाग लेने के कारण हुई।
इसके अतिरिक्त भी उन्हें कई बार गिरफ्तार कर यातनाएं दी गई।
15 सितंबर 1916 को महम के श्रीराम जांगड़ा के घर जन्में बद्रीप्रसाद काला आजादी के बाद समाज सेवा में लगे रहे। संयुक्त पंजाब के तात्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो ने उन्हें गोहाना तहसील का सब रस्ट्रिार भी नियुक्त किया था। उन्होंने 1967 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव भी लड़ा, लेकिन कुछ वोटों से हार गए। कांग्रेस में उनकी पहुंच सीधे प्रधानमंत्री इंद्रागांधी तक थी। उन्हें 15 अगस्त 1972 को तात्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंद्रा गांधी द्वारा ताम्रपत्र देकर सम्मानित भी किया गया । 23 सितंबर 1982 को वे इस नश्वर संसार को छोड़कर चले गए। 24c न्यूज/ दीपक दहिया 8950176700
24सी न्यूज आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें नमन् करता है।
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