शाम को गुंजता था “कल कल वाली” गीत
देव उठनी ग्यास का हरियाणा में बहुत अधिक महत्व है। यहां इस दिन शाम को बहुत सुंदर आयोजन होने की परंपरा रही है। लड़कियों की टोलियां घर-घर जाकर इस दिन देव उठाती थी। बदले में उन्हें खाने का सामान मिलता। उसे मिलकर बांट खाया जाता और खूब गीत भजन नृत्य किया जाता । हालांकि धीरे-धीरे यह परंपरा भी बहुत से अन्य आयोजनों के तरह लुप्त सा होने लगी है। लेकिन यह दिन हमारी गजब की सांस्कृतिक धरोहर की पहचान है।
गांवों में ऐसे मनाते थे ग्यास
हरियाणा में यह त्यौहार विशेषकर अविवाहित लड़कियों को समर्पित होता है। हर घर में थाली या परात के नीचे कुछ खाने वस्तुएं तथा पैसे आदि भी दबा देते हैं। फिर शाम को लड़कियों का दल एकत्र होकर घरों में आता और थाली या परांत के नीचे रखी गई पैसे और खाने की वस्तुओं की उठा लेती हैं। उस थाली या परांत को बजाते हुए एक गीत गाती और फिर उस स्थान पर एक दीया जला देती जो पूरी रात जलता है। इस गीत में भाइयों और बेटों के लिए मंगलकामना होती है।
ये है पौराणिक मान्यता
कहते हैं अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु चार मास के लिए सो जाते हैं। उसके बाद कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस दिन देव उठते हैं इसीलिए इसे देव उठनी ग्यास कहा जाता है।
इस दिन से शुरु हो जाते हैं शुभमुर्हत है। इस दिन बेबूझ विवाह का दिन होता है अर्थात इस दिन के लिए विवाह की तारीख बिन बूझे ही निश्चित कर ली जाती है। यही कारण है कि इस दिन बहुत अधिक शादियां होती हैं।
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