हूबहू बना देता हैं चित्र, बचपन से ही करता है चित्रकारी
ओयल पेंटिंग के साथ-साथ ग्लास पेटिंग भी करता है
महम
जब ’कला’ का प्रदर्शन हो जाता है तो ’कला’ और ’कलाकार’ दोनों को पहचान मिल जाती है। कभी-कभी कलाकार बस ’कला’ को तपस्या मानकर करता रहता है। ना उसे ’नाम’ की चाह होती और ना ’कला’ से दाम की। महम में एक ऐसा ही चि़त्रकार है, जिसे आप सिर्फ पेंटर के रूप में जानते हैं। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस तपस्वी चित्रकार के हाथों में ऐसा जादू हैं कि चित्रों को हूबहू शक्ल दे देता है। इस चित्रकार के चित्रों के सदी के फिल्मी महानायक अभिताभ बच्चन भी कायल हो चुके हैं। उन्होंने स्वयं इनको पत्र लिखा है।
वैसे तो महम में ये एक जाना पहचाना नाम है। आप इन्हें बीके पेंटर के नाम से जानते हैं। आज 24c न्यूज बिजेंद्र कुमार रोहिल्ला के उस हुनर से आपको परिचित करवा रहा है, जिसके बारे में आप परिचित नहीं हैं।

सहपाठियों की काॅपी पर बनाते थे ड्राईंग
बीके को बचपन से ही चित्रकारी का शोक था। स्कूल में सहपाठियों की काॅपियों पर पेंसिल और पेन से चित्र बनाते रहते थे। स्कूल से काॅलेज गए तो भी पेंटिंग की ही धून थी। हालांकि बीके ने बीए पास किया, लेकिन सरकारी नौकरी की बजाय 1990 में उस वक्त के महम के प्रसिद्ध राज पेंटर के पास वाॅल पेटिंग सिखने लगे। कुछ ही दिन में दीवारों पर लिखाई में दक्षता भी हासिल कर ली।

बीच-बीच में करते हैं पेंटिंग
बीके समय मिलते ही आॅयल पेटिंग करते हैं। धार्मिक चित्र बनाना उनकी पहली पसंद है। हालांकि अपने आरंभिक काल में उन्होंने पेंसिल के स्कैच ज्यादा बनाएं। काॅलेज के दिनों में उनके द्वारा बनाई गई तस्वीर बहुत चर्चित हुई थी। अमिताभ बच्चन के कई पोज उन्होंने बनाएं और उन्हें भेजे हैं। तभी अमिताभ बच्चन ने उन्हें पत्र लिख कर उनकी प्रशंसा की थी। उनके चित्र एकदम जीवंत लगते हैं।

रोजी ने केवल स्ट्रीट पेंटर तक सीमित कर दिया
बीके का कहना है कि पिता की नौकरी छोटी थी। उनका देहांत भी जल्दी हो गया था। घर की जिम्मेदारियों के चलते स्ट्रीट पेंटिंग पर ही ज्यादा ध्यान दिया। फिलहाल गोहाना रोड़ पर अपनी दुकान से वाॅल पेंटिंग, स्टोन प्लेट, स्टील प्लेट, एसीपी प्लेट, रेडियम स्टीकर आदि का काम कर रोजी चलाते हैं। वक्त मिलता है तो आॅयल पेंटिग कर लेते हैं।

ग्लास पेटिंग भी करते हैं
बीके अत्यंत चुनौतीपूर्ण मानी जाने वाली ग्लास पेंटिंग भी करते हैं। खासबात यह है कि पेंटिंग के हुनर के लिए उन्होंने किसी से कोई शिक्षा नहीं ली। केवल अनुभव से ही सीखते रहे। बस चित्र बनाना शोक था। बनाते रहे।
अभी तक नहीं लगी कोई प्रदर्शनी, ना बेचा कोई चित्र
बीके की अभी तक कोई चित्र प्रदर्शनी नहीं लगी है। इन्होंने अब तक अपने किसी चित्र को बेचा भी नहीं है। बीके का कहना है कि वे ये तो चाहते हैं कि उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगे, लेकिन चित्रों को बेचना उनका मकसद् नहीं है।

पिता भी थे कलाकार
बीके रोहिल्ला के पिता मंगतराम रोहिल्ला महम नगरपालिका में नौकरी करते थे। मंगतराम एक बेहतरीन रामलीला कलाकार थे। होरमोनियम वादक तथा लेखक भी थे। उनकी रामलीला कला की चर्चा आज भी महम में होती है।

चाहते हैं और अधिक चित्रकारी करना
बीके रोहिल्ला का कहना है कि दुकान के कामों से उन्हें फुरसत नहीं मिलती, लेकिन अब उनका मन है कि एक योजना बनाकर वे लगातार कुछ चित्र बनाते रहें।24c न्यूज/ इंदु दहिया 8053257789

आज की खबरें आज ही पढ़े
साथ ही जानें प्रतिदिन सामान्य ज्ञान के पांच नए प्रश्न तथा जीवनमंत्र की अतिसुंदर कहानी
डाउनलोड करें, 24c न्यूज ऐप, नीचे दिए लिंक से
Link: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.haryana.cnews