20 सालों तक महिला स्कूली खेलों में छाया रहा चौबीसी का गांव खरकड़ा
नहरों के किनारें, खेतों में जाकर किया अभ्यास
कई लड़कियां पहुंची खेल कोटे से उच्च पदों तक
सेवानिवृति के बाद भी गांव में रहकर समाजसेवा में लगी है उदयकौर
अभी दो सपने बाकी हैं, जिन्हें चाहती हैं पूरा करना
इंदू विजय दहिया
जब व्यक्ति अपनी कमजोरियों से भागने की बजाय उनका सामना करने लग जाता है। वितरित परिस्थितियों से डरने की बजाय उन्हें हथियार बना लेता है तो ऐसा सृजन जन्म लेता कि इतिहास बन जाता है। 22 साल तक अपनी ससुराल में नौकरी करते हुए शारीरिक शिक्षा की एक अध्यापिका ने गांव की लड़कियों में खेलों को ऐसा जज्बा भरा कि एक समय स्कूली खेलों की तीनों वर्गों की चैंपीयनशिप इसी गांव के नाम हो जाती थी। महम चौबीसी के इस गांव की लगभग 40 बेटियां केवल खेलों के दम पर सरकारी या गैरसरकारी नौकरी करती हैं। एथेलिटिक्स में 50 से ज्यादा लड़कियां राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं। जिला स्तर पर खेलने वाली लड़कियों की संख्या तो कई सौ तक है। 24c न्यूज की संडे स्टोरी आज गांव खरकड़ा की लड़कियों के खेलों में चमक के उसी स्वर्णिम इतिहास की पड़ताल कर रही है।
शारीरिक शिक्षा अध्यापिका उदयकौर ने वैसे तो अध्यापिका की नौकरी 1978 में ज्वाइन की थी, लेकिन गांव खरकड़ा में उनकी नियुक्ति 1989 में हुई। उस समय गांव का लड़कियों का हाई स्कूल था। लड़कियों का खेलों से दूर-दूर तक का नाता नहीं था।
सरपंच धर्मबीर का योगदान अविस्मरणीय
उदयकौर बताती हैं कि उस समय गांव के सरपंच धर्मबीर होते थे। उन्होंने उनसे कहा कि वे चाहती हैं कि गांव की लड़कियां खेलों में भाग लें। वे हर तरह से सुरक्षा व तैयारियों की जिम्मेदारी लेती हैं। सरपंच ने सहयोग का वचन दिया। स्कूल के मैदान ठीक करवाएं तथा ग्रामीणों को लड़कियों को खेलों में भाग लेने देने के लिए मनाया। धर्मबीर के योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता।
दो साल में ही आने लगे परिणाम
उदय कौर का कहना है कि वे खेलों की बारीक तकनीकों के बारे में नहीं जानती थी। बस मेहनत करवाती रहती थी। इसलिए उन्होंने समूह खेलों की बजाय एथेलिटिक्स पर ज्यादा ध्यान दिया। गांव की लडकियां शारीरिक रूप से मजबूत थी। दो साल में ही परिणाम आने लगे। पहले राज्य और फिर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उनका नाम होने लगा। एक समय तो ऐसा आया जब अंडर-14, अंडर-17 तथा अंडर-19 तीनों ही वर्गों की चैंपीयनशिप उनके स्कूल की खिलाड़ियों के नाम होने लगी।
कई लड़कियां कर रही हैं उच्च पदों पर नौकरियां
उदयकौर ने बताया कि कई ऐसी लड़कियां हैं जो हरियाणा, दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त रेलवे तथा अन्य विभागांे में भी खेलों के दम पर नौकरियां कर रही हैं। ये लड़कियां आज भी जब गांव में आती हैं तो उनके पास आती हैं और उन्हें गहन आदर भाव देती हैं। उदयकौर ने बताया कि एक लड़की को तो वे गोबर के हाथ घुलवा कर खेलने के लिए लाई थी। वह लड़की बाद में रेस में नेशनल चैंपीयन बनी। उदयकौर इन अधिकतर लड़कियों के नाम उनके पिता के नामों के सहित जानती हैं।
नहर किनारे करती थी अभ्यास
उदय कौर का कहना है कि स्कूल में मैदान नहीं था। आज भी नहीं है। वे सुबह चार बजे लड़कियों को गांव के साथ लगती भिवानी डिस्ट्रीब्यूटरी पर ले जाती। 15-15 किलोमीटर तक लड़कियों को दौड़ाती। नहर खाली होती तो उसमें भागने के लिए कहती। ताजा जोते हुए खेतों में जाकर लड़कियों को दौड़ने के लिए कहती, ऐसे खेतों में दौड़ने से अतिरिक्त पावर लगती थी। प्रतिदिन सुबह कम से कम तीन घंटे का नहर किनारे अभ्यास सत्र होता था।
एक बार खराब कर दी थी ज्वार की बिजाई
उदय कौर ने बताया कि एक बार वे नहर किनारे ताजा जुते खेत में अभ्यास करने लगे। लड़कियों ने इस खेत में जमकर अभ्यास किया। सुबह के अंधेरे में पता नहीं चला कि इसमें बिजाई कर रखी है। बाद में पता चला कि उन्होंने तो एक किसान की ज्वार की बिजाई की खराब कर दी। लेकिन किसान ने कोई उल्हाना नहीं दिया।
मजाक का कुछ ऐसे दिया जवाब
उदयकौर कहती है कि वे स्वीकार करती हैं कि खेलों के मैदानों की पैमाइश करने तथा अन्य तकनीकों के बारे में उन्हें आरंभ में कम जानकारी थी। वे एक दिन स्कूल में लड़कियों को खिला रही थी। वे रेस के स्टार्टिंग प्वाइंट को गलत ढंग से प्रदर्शित कर रही थी। एक साथी अध्यापक ने उनका मजाक उड़ाया और कहा कि ये तो पता नहंी कि ट्रैक पर स्टार्टिंग प्वाइंट कहां होता हैं, चले हैं नेशनल चैंपीयन बनने। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें नहीं पता। उन्होंने उसकी पूरी जानकारी हासिल की और उसी साल टीम को नेशनल चैंपीयन बनाया। वह अध्यापक अब उनका बहुत सम्मान करते हैं।
अपने सपने को बनाया हथियार
उदयकौर अभी दसवीं कक्षा में हुई ही थी कि 1970 में उनकी शादी हो गई। उनके पति अध्यापक दयानंद ने उनका सहयोग किया दसवंी भी करवाई तथा बाद में खानपुर से पीटीआई का कोर्स भी करवाया। उदय कौर कहती हैं कि वे पढ़ना और खेलना चाहती थी, लेकिन उस वक्त उनके परिवार ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। बाद में उन्होंने अध्यापिका बनकर गांव की लड़कियों के माध्यम् से यह सपना पूरा किया। इसमंे उनके पति का पूरा योगदान रहा।
बड़े बेटे का है फिल्मों में नाम
उदयकौर का बड़ा बेटा जयदीप अहलावत हिंदी फिल्मों का जाना-माना नाम है। जबकि छोटा बेटा जगदीप अहलावत गणित का अध्यापक है। उदयकौर स्वयं अब भी अपने पति सेवानिवृत अध्यापक दयानंद के साथ गांव मे ही रहती और समाजसेवा के कार्यों में लगी रहती हैं।
गांव में बने खेल का मैदान
उदयकौर का कहना है कि वे चाहती हैं कि उनके गांव में पेयजल की व्यवस्था दुरूस्त हो जो अभी बहुत खराब है। पिछले दिनों उन्होंने ग्रामीणों के सहयोग से गांव के जलघर की सफाई भी करवाई थी। इसके अतिरिक्त वे चाहती है कि गांव में खेलों के लिए एक मैदान हो। गांव खरकड़ा में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस उन्हें सुविधा व उचित मार्ग दर्शन नहीं मिल रहा।
रूक सा गया कारवां
उदयकौर वर्ष 2011 में सेवानिवृत हो गई। उसके बाद गांव में लड़कियों के खेलों का करवां रुक सा गया। अब लड़कियां पहले की तरह खेलों में भाग नहीं ले रही। उदयकौर का कहना है कि यह देख कर उन्हें दुःख होता है। उदयकौर से बातचीत/24c न्यूज
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