एक व्यक्ति खुद से ही लड़ रहा था
एक सिपाही बाजार से गुजर रहा था। एक दुकान के भीतर से उसे जोर-जोर से दो व्यक्तियो के लड़ने की आवाज आई। उसे लगा लड़ाई ज्यादा है।
सिपाही ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से एक व्यक्ति आया।
पुलिस वाले ने पूछा दूसरा कहां है और तुम क्यों लड़ रहे हो?
दुकानदार ने कहा अंदर कोई नहीं है। वो अकेला ही था।
सिपाही ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है, मैने कम से कमदो आवाजे सुनी हंै। वो भी तेज-तेज लड़ने की। तभी तो मैने दरवाजा खटखटाया है।
दुकानदार ने कहा कि दोनों आवाजें मेरी ही थी। मैं ही स्वयं से लड़ रहा था।
दिन भर मै अलग-अलग चेहरों और मुखौटों से काम करता हूं। मैं वास्तव बिल्कुल सच बोलने वाला व्यक्ति हूं। दिन में कई बार झूठ बोल देता हूं।
शाम को सच बोलने वाला व्यक्ति झूठ बोलने वाले व्यक्ति से खूब लड़ता है। जब सच और झूठ के बीच लड़ाई पूरी हो जाती है तो मैं ‘दुकानदार’ घर चला जाता हूं।
ठीक इसी प्रकार हमारे भीतर भी सच और झूठ पनपते रहते हैं। मानव खुद से लड़ता है। कभी सच भारी हो जाता है तो कभी झूठ।
महापुरुषों ने कहा है इस लड़ाई में जिसका सच जीत जाता है, वो महामानव की ओर अग्रसर हो जाता है।
आपका दिन शुभ हो!!!!!
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