सराय में आए ऊंटों की कहानी
एक बार एक सराय में एक यात्रियों का काफिला आकर रुका। उनके साथ सौ ऊंट थे। रात को विश्राम करते समय जब ऊंटों को बांधा जाने लगा तो एक खूंटी और रस्सी कम पड़ गई। यात्रियों को लगा कि ऊंट को खुला छोड़ दिया तो भाग जाएगा।
सराय के मालिक से खूंटी और रस्सी मांगी गई तो सराय के मालिक ने कहा उसके पास खूंटी और रस्सी तो नहीं लेकिन एक तरकीब बता सकता है। ऊंट बैठ भी जाएगा और बंधा भी रहेगा।
उसने यात्रियों से कहा, ‘जाओ और झूठी खूंटी गाड़ दो, झूठी ही रस्सी बांध दो। ऊंट को आदत है हर रोज बंधने की। आज भी बंध जाएगा।’
यात्रियों ने ऐसा ही किया। एक झूठी खूंटी गाड़ने का नाटक किया और एक रस्सी भी झूठी ही ऊंट के गले में बांध दी। ऊंट बैठ गया और रात भर वहीं बैठा रहा।
सुबह सब ऊंट खोल लिए गए। सब ऊंट चलने को तैयार थे, लेकिन झूठी खूंटी वाला ऊंट वहीं बैठा रहा।
अब फिर सराय के मालिक से पूछा गया कि ये क्या हो गया। ये ऊंट उठ क्यों नहीं रहा।
सराय के मालिक ने कहा, पहले उसकी खूंटी उखाड़ों और रस्सी तो खोलो
यात्रियों ने कहा, पर खूंटी और रस्सी है कहां
सराय के मालिक ने कहा जैसे झूठी खूंटी गाड़ी थी, झूठी रस्सी बांधी थी। वैसे ही बस झूठे ही खोल दो। ऊंट उठ जाएगा।
ऐसा ही हुआ, झूठे ही खूंटी उखाड़ी गई, रस्सी खोली गई। ऊंट उठ गया।
सराय के मालिक ने कहा जानवर ही नहीं, हम सबको भी झूठी खूटिंयों से बंधने की आदत है। बहुत सी खूंटियां होती नहीं लेकिन बना रखी हैं। बस हम बंधे हैं
ओशो प्रवचन
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