नमक की तस्करी रोकने के लिए अंग्रेजो बनाया था विशेष रास्ता
- महम के दक्षिण से गुजरता था यह रास्ता
- महम की बना था कस्टम हाऊस भी
- 1857 में तोड़ दिया गया था कस्टम हाऊस, महम के ही एक परिवार ने बचाया था अंग्रेजी महिला व बच्चों को
महम के दक्षिण से गुजरता था यह रास्ता
महम की बना था कस्टम हाऊस भी
1857 में तोड़ दिया गया था कस्टम हाऊस, महम के ही एक परिवार ने बचाया था अंग्रेजी महिला व बच्चों को
इंदु दहिया
महम आज देखने और पढ़ने में एक साधरण सा कस्बा दिखता है, लेकिन इस कस्बे का इतिहास इतना रोचक और समृद्ध है कि इतिहासकारों तथा पुरातत्वों के लिए यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल हो सकता है। आज 24c न्यूज पर महम के इतिहास की ऐसी जानकारी दी जा रही है जिससे अधिकतर महमवासी अनजान होंगे। यह जानकारी न केवल रोचक है बल्कि रोमांचित करने वाली भी है।
खास बात यह है कि लगभग दो सौ साल गुजरने के बाद भी इस ऐतिहासिक तथ्य के प्रत्यक्ष प्रमाण महम में मौजूद हैं। ये प्रमाण कहीं दूर भी नहीं हैं। महम के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के पास जाकर इनको सपष्ट रूप से देखा जा सकता है।
महम से गुजरती थी कस्टम लाइन
इस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में नमक पर टैक्स लगाया था। यह टैक्स भारत में इस्ट इंडिया कम्पनी के राज से पूर्णतया ब्रिटिश राज तक चलता रहा। परिणामस्वरूप नमक बहुत अधिक महंगा हो गया था। नमक खाना भी जरूरी था।
ऐसे हालातों में नमक की तस्करी होने लगी थी। नमक की तस्करी को रोकने के लिए अंग्रेज नमक को विशेष रूप से बनाए रास्तों से ही लाते-ले जाते थे। जिस रास्ते से नमक को लाया व ले जाया जाता था। उसे कस्टम लाइन कहा गया था।
40 हजार किलोमीटर से भी अधिक लंबी थी लाइन
इंडियन कस्टम लाइन विकीपीडिया से मिली जानकारी बताती है कि यह लाइन बंगाल की खाड़ी से आरंभ होकर संयुक्त भारत के पंजाब अर्थात वर्तमान पाकिस्तान के मुलतान तथा उससे भी आगे तक जाती थी। इस लाइन की लंबाई 40 हजार किलोमीटर से भी अधिक थी। उस समय यह रास्ता कच्चा था।
महम में यहां से गुजरती थी कस्टम लाइन
वर्तमान हरियाणा में यह लाइन फर्रूखनगर से बेरी की ओर से होते हुए वर्तमान महम बेरी मार्ग थी। महम मंे यह लाइन राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के बीचों-बीच होती हुई वर्तमान ईमलीगढ़ से गुजरती हुई आगे हांसी और हिसार की ओर जाती थी। वरिष्ठ नागरिक शिवराज गोयत बताते हैं कि इस रास्ते को बुजुर्ग कुछ समय पहले तक भी कस्टम लाइन कहते थे।
आज भी मौजूद हैं हिंस की झाड़ियां
इस रास्ते पर स्कूल से निकलते ही आज भी हिंस की झाड़ियां मौजूद हैं। विकीपिडिया से साफ जानकारी मिलती है कि इस रास्ते की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों ने इसके दोनों तरफ स्थानीय जलवायु के अनुसार कंटीली झांड़ियां उगाई थी। महम में इसके दोनांे तरफ हिंस की झांड़ियां थी। जो आज भी वहां मौजूद हैं। यह रास्ता भी अभी मौजूद है। हालांकि स्कूल बीच में होने के कारण गांव किशनगढ़ और ईमलीगढ़ के बीच यह आम रास्ता नहीं रहा। लेकिन पैदल यात्री अभी भी इस रास्ते से जाते हैं। कुछ स्थान पर अभी भी यह रास्ता कच्चा ही है। उस कई स्थानों पर तो इन झाड़ियों की ऊंचाई 12 फुट तक थी। हिंस बहुत ही कटीला होता है। कहते हैं इसमें से सांप भी नहीं गुजर सकता। इसके कांटे खतरनाक होते हैं।
यहां पर था कस्टम हाऊस
महम में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के उत्तर पश्चिम में कस्टम हाऊस था। शिवराज गोयत बताते हैं कि उनके समय तक इस कस्टम हाऊस के अवशेष भी देखे जा सकते थे। विकीपीडिया के अनुसार कस्टम हाऊस 1803 में बनाने आरंभ किए गए थे। इनके माध्यम् से को नमक की सुरक्षा की जाती थी। कस्टम हाऊस तात्कालीन इनलैंड कस्टम विभाग के तहत कार्य करते थे। इनके तहत अधिकारी, जमादार व पैट्रोलिंग पार्टी होती थी। जानकारी मिलती है कि इस विभाग में 1872 में 14 हजार से अधिक कर्मचारी थे।
1857 में तोड़ा गया था कस्टम हाऊस
शिवराज गोयत बताते हैं कि 1857 में महम के कस्टम हाउस को तोड़ दिया गया था। यहां के स्टाफ पर भी हमला गया था। तब एक गोयत परिवार ने यहां तैनात अंग्रेज अधिकारी की पत्नी व बच्चों को बचाया था। इस परिवार को अंग्रेजी सरकार ने जैलदारी भी दी थी, लेकिन बाद में इस परिवार ने अगं्रेजों द्वारा दी गई इस जैलदारी को ठुकरा दिया था।
कहावत थी आंख से चुगना पड़ेगा नमक
बुजुर्ग नमक की बहुत अधिक कदर करते थे। नमक उस समय बेशकीमती था। नमक पर 1946 तक टैक्स रहा है। बुजुर्गों में एक कहावत थी कि नमक को अगर गिरा दिया गया तो अगले जन्म में आंख से चुगना पड़ेगा। इसके पीछे यही तर्क था कि टैक्स अधिक होने के कारण नमक को खरीदना मुश्किल होता था।
सौजन्य से
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बेहतरीन जानकारी
इस तरह की पत्रकारिता बेहद जरूरी है इतिहास बताने वाले व इतिहास संजोने वाले कम ही रह गए हैं
thanyou panchal ji
aap apne sujhav sanjha krtey rahe!
नमस्ते मैडम।
बहुत अच्छी जानकारी है।
thank you