• सीधे खेती से जुड़ी दो जातियां खुलकर दिखी एक साथ
  • अन्य जातियों में भी हुई सेंधमारी, सभी जातियों के कार्यकर्ताओं ने की खूब मेहनत
  • भाजपा को अभी भी कोसली और मोदी फैक्टर पर भरोसा
  • महम, इंदु दहिया
  • रोहतक लोकसभा चुनाव में महम पर खास नजर थी। लगता है इस बार कांग्रेस ने महम के लिए तैयारी भी विशेष की थी। कांग्रेस की दो तरफा रणनीति और सीधे खेती से जुड़ी दो जातियों की जुगलबंदी के कारण महम में तस्वीर बदली हुई नजर आई। हालांकि अंतिम परिणाम पर मुहर तो चार जून को ही लगेगी, लेकिन महम का समूचे लोकसभा क्षेत्र में सर्वाधिक मतदान इस ओर संकेत करता है कि इस बार महम के मतदाता अपने मताधिकार को लेकर अपेक्षाकृत अधिक उत्साहित थे। महम में मतदान का प्रतिशत लगभग 70 प्रतिशत रहा। यह अन्य के मुकाबले ज्यादा ही है। एक तरफ जहां भाजपा मोदी फैक्टर के सहारे रहीं तो दीपेंद्र की व्यक्तिगत छवि, किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना, संविधान तथा आरंक्षण के मुद्दे कांग्रेस के पक्ष में रहे। कांग्रेस की न्याय गारंटी तथा चौ. भूपेंद्र हुड्डा के वादे भी आखिर में कुछ हद तक मतदाताओं तक पहुंचे। भाजपा ने आरंभ से ही इस चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने प्रयास किया तो कांग्रेस ने दीपेंद्र के चेहरे को हथियार बनाया। दीपेंद्र की छवि ने मतदाताओं को लुभाया भी।
  • हुड्डा परिवार ने संभाला मोर्चा
  • महम विधानसभा में इस बार आरंभ से ही हुड्डा परिवार के सदस्यों ने भी समानांतर मोर्चा संभाले रखा। बिल्लू हुड्डा ने आरंभ से आखिर तक लगभग सभी गांवों में जनसंपर्क किया। सिद्धार्थ हुड्डा ने भी आरंभ में कुछ गांवों में डोर टू डोर जनसंपर्क किया। 22 मई को दीपेंद्र की माता श्रीमती आशा हुड्डा की महम में जनसभा से भी अच्छा संदेश गया। इस अभियान से हुड्डा परिवार उन वोटरों को न केवल सीधे जोड़ने तथा सक्रिय करने में कामयाब हो गया जो किसी कारण पूर्व मंत्री आनंद सिंह दांगी से नाराज थे। स्थिति ये बन गई थी कि 25 मई आते-आते बिल्लू हुड्डा का जनसंपर्क सभाओं में बदलने लगा था। इन वोटरों को साधना दीपेंद्र के लिए बड़ा प्लस प्वाइंट दिखता है। महम तथा लाखमाजरा के अधिकतर सरपंचों का दीपेंद्र हड्डा को सीधे जाकर समर्थन तथा अच्छी संख्या में अनुसूचित जाति के नए कार्यकर्ताओं को जुड़ना इस अभियान की बड़ी सफलता रही। अच्छे जनाधार वाले कुछ ऐसे स्थानीय नेता जो गत संसदीय चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को साथ छोड़ गए थे। वे खुलकर दीपेंद्र हुड्डा के समर्थन में फिर से आ गए।
  • दांगी परिवार ने लगाया जोर
  • बेशक हुड्डा परिवार के सदस्य महम विधानसभा में लगातार सक्रिय रहे इसके बावजूद चुनाव अभियान का मुख्य संचालन तथा नेतृत्व पार्टी प्रोटोकॉल के अनुसार पूर्व मंत्री आनंद सिंह दांगी तथा उनके पुत्र बलराम दांगी के ही हाथ में रहा। बलराम दांगी की पत्नी अन्नू दांगी भी लगातार सक्रिय रही।
  • दांगी परिवार ने भी न केवल हर गांव में बल्कि अधिकतर गली व मौहल्लों तक बैठकें तथा सभाएं की। उन्होंने भी रूठों हुआंे को मनाया तथा सफल सभाएं की। जिसका असर चुनाव के दिन भी दिखाई दिया।
  • भाजपा ने मोदी और गैरजाट मुद्दे को बनाया हथियार
  • भाजपा के कार्यकर्ता इस बार 2019 की अपेक्षा कुछ कम सक्रिय दिखाई दिए। राज्यभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा, शमसेर खरकड़ा, राधा अहलावत तथ मंहत सतीश आदि ने यहां चुनाव की कमान संभाली थी। भाजपा ने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा राममंदिर के नाम पर वोट मांगा। हालांकि सोशल मीडिया तथा सीधे संवाद के दौरान गैरजाट के मद्दे को पूरी हवा दी गई। इसका असर भी दिखा कुछ जातियां भाजपा के साथ मजबूती से खड़ी भी दिखाई दी। भाजपा ने महम शहर को भी मुख्य रूप से फोकस किया थां। 2019 में दीपेंद्र हुड्डा को 4400 वोटों की बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इस बार कम से कम ऐसा दिख तो बिल्कुल नहीं रहा।
  • जातीय समीकरण कांग्रेस के पक्ष में
  • महम विधानसभा क्षेत्र में 50 से 52 प्रतिशत जाट वोटर है। जबकि लगभग 12 प्रतिशत वोट चमार है। कई दशकों के बाद ये दोनों जातियां बूथों पर पूरी तरह एक साथ नजर आई। इसके अतिरिक्त अनुसूचित वर्ग की अन्य जातियों मे भी कांग्रेस भी अच्छी सेंधमारी हुई लगती है। पिछडा वर्ग तथा अन्य स्वर्ण जातियां भाजपा की ताकत नजर आई। 4 जून को आने वाला परिणाम ये तय करेगा की किस दल ने अपने विरोधी दल की ताकत में कितनी सेंधमारी की है। बहुत सा वोटर साइलेंट भी रहा। इस वोटर का मिजाज 4 जून को ही पता चल पाएगा। फिलहाल जातीय समीकरणों तथा वोटिंग रूझानों से लगता है कांग्रेस महम में 2019 की अपेक्षा ज्यादा भारी रहेगी। विशेषकर गांवों में तो यह भारीपन और अधिक मजबूत दिखता है। हालांकि जजपा प्रत्याशी भी महम के गांव खरकड़ा से ही हैं, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही सीधा रहा।
  • इंदु दहिया/ 8053257789
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