महम की ऐतिहासिक धरोहर है खांड की मंडी मंदिर
देवी की प्राचीन प्रतिमा है यहां स्थापित
वैद्य शुक्ल जी थे अपने काल के प्रसिद्ध चिकित्सक
पंडित खुशीराम के मुकाबले का नहीं था लाठी चलाने वाला
“महम की ऐतिहासिक झलक” भाग-एक
क्या आप जानते हैं, महम में कभी खांड की बहुत बड़ी मंडी लगती थी? यहां बना मंदिर बावड़ी निर्माण काल के आसपास का ही है। यहां एक ऐसा लाठी चलाने वाला था जिसकी धाक दूर दूर तक थी। यहां एक ऐसा वैद्य था जिसके नाम सुनते ही महम के बुजुर्ग आज भी श्रद्धा से शीश झूका लेते हैं?
जीं हां महम की ऐतिहासिक झलक श्रृखंला के पहले लेख में 24c न्यूज आपकों इन ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत करवा रहा है।
महम का खांड की मंडी मंदिर महम की एक ऐतिहासिक धरोहर है। लगभग 25 साल पहले एक साक्षात्कार में यहां के तात्कालीन पंडित खुशीराम ने बताया था कि यह मंदिर देवी की भक्त किसी कलाली ने बनाया था। महम में कलालों के रहने के ऐतिहासिक प्रमाण हैं। महम की बावड़ी भी सैदु कलाल ने ही बनवाई थी। मंदिर की वास्तुकला भी उसी काल की दिखती है। ऐसे में साफ है महम के उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर लगभग ढ़ाई सौ साल पुराना है।
देवी की प्राचीन प्रतिमा है स्थापित
मंदिर में देवी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के वर्तमान पुजारी बलराज शर्मा ने बताया कि यह प्रतिमा महम के पास के ही किसी स्थान से जमीन से निकली थी। जिसे यहां लाकर स्थापित किया गया। इसके अतिरिक्त यहां हनुमान जी की भी प्राचीन प्रतिमा है। अन्य देवी देवताओं तथा शिव परिवार की प्रतिमाएं यहां स्थापित हैं।
सामने लगती थी खांड की मंडी
इस मंदिर के सामने खाली मैदान था। जहां खांड की मंडी लगती थी। महम की खांड उस समय दुनिया भर में प्रसिद्ध थी। दूसरे देशों के व्यापारी भी यहां आकर खांड ले जाते थे। इसी कारण इस स्थान का नाम आज भी ‘खांड की मंडी’ है और मंदिर को भी ‘खांड की मंडी’ वाला मंदिर ही कहा जाता है।
होता था कुश्ती दंगल, लगता है मेला
यहां बहुत पुराने समय से ही कुश्ती दंगल होता था। यह दंगल अब भी कुछ साल पहले तक गुगानवमीं के दिन होता रहा है। गुगानवमीं के दिन यहां अब भी ऐतिहासिक मेला भी लगता है। यह मेला भी लगभग दो सौ साल पुराना ही माना जाता है।
साक्षात धनवन्तरी मानते थे वैद्य शुक्ल जी को
इस मंदिर के अब से चौथी पीढ़ी के पुजारी पंडित शुक्ल जी बहुत ही पहुंचे हुए वैद्य थे। कहते हैं भयंकर से भयंकर बीमारियों का इलाज वे करते थे। दूर-दूर तक मरीज उनके पास इलाज के लिए आते थे। महम में आज भी बुजुर्ग उनका जिक्र करते हैं और याद करते हैं।
लाठी के गज़ब खिलाड़ी थे पंडित खुशीराम
वैद्य शुक्ल जी पंडित रामसरुप को बचपन में ही अपने चेले के रूप में अपने साथ ले आए थे, लेकिन उनका लगभग 25 वर्ष की आयु में देहांत हो गया था। उनकी समाधी आज भी राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के पास स्थित है। उनके बाद शुक्ल जी रामसरुप के ही भाई खुशीराम को लेकर आए। खुशीराम शुक्ल जी के बाद यहां के पुजारी बने। खुशीराम लाठी अति प्रसिद्ध खिलाड़ी थे। मंदिर के सामने वाले परिसर में वे लाठी का प्रशिक्षण देते थे। महम में अधिकतर लाठी चलाने वाले उनके ही शिष्य थे।
दोबारा दांत उग आए थे, बाल हो रहे थे काले
पंडित खुशीराम जी का देहांत एक सौ आठ वर्ष की आयु में 1996 में देहांत हुआ था। यह कपोल कल्पित नहीं है, बल्कि सत्य है कि उनके सौ साल की उम्र के बाद बाल फिर से काले होने लगे थे। उनके मुंह में फिर से दांत आने लगे थे।
चार भौंण का है कुआ
मंदिर के सामने चार भौंण का ऐतिहासिक कुआ है। महम में पानी की संकट अति प्राचीन है। अंदर के इलाकों में जमीन के नीचे का पानी पीने के लिए उपयुक्त नहीं था। इस कुएं का पानी पीने के लिए अति उपयुक्त था।
होती थी रामलीला
आजादी से पहले इस मंदिर परिसर में ही रामलीला होती थी। इस रामलीला की देखरेख वैद्य शुक्ल जी और फिर पंडित खुशीराम करते थे। अब मंदिर के सामने वाले परिसर में रामलीला होती है। इस रामलीला का नाम सनातन धर्म रामलीला है।
बलराज उर्फ बजरंग हैं वर्तमान पुजारी
मंदिर के वर्तमान पुजारी बलराज उर्फ बजरंग शर्मा हैं। ये पंडित खुशीराम के पौत्र हैं। पंडित खुशीराम के देहांत के बाद उनके पुत्र अर्जुन शर्मा मंदिर की देखभाल करते थे। अर्जुन शर्मा का वर्ष दो हजार चौदह में देहांत हो गया था। पंडित खुशीराम के दूसरे पुत्र ऋषि राज शर्मा का परिवार फरीदाबाद में रहता है।
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